लोकसभा में पेश हुआ One Nation One Election बिल, चुनाव सुधार में होगी क्रांति, ये हैं चुनौतियां
One Nation One Election : केंद्र सरकार ने चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए वन नेशन, वन इलेक्शन बिल को लोकसभा में पेश कर दिया है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार 17 दिसंबर को विधेयक पेश किया. वन नेशन, वन इलेक्शन का वादा बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था . कांग्रेस सहित लगभग अन्य सभी विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं.
वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation One Election) विधेयक में क्या है खास
वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में क्या हैं तर्क
वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करने में क्या हैं चुनौतियां
FAQ वन नेशन, वन इलेक्शन क्या है?
भारत में वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए किन–किन अनुच्छेदों में संशोधनों की आवश्यकता है?
One Nation One Election : नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation One Election) विधेयक पेश कर दिया गया है. इस विधेयक को लोकसभा ने 269 वोट से स्वीकार कर लिया है जबकि विरोध में 198 वोट पड़े हैं. यह बिल देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से संबंधित है. विपक्ष इस बिल का यह कहकर विरोध कर रहा है कि इससे देश के संघीय ढांचे को नुकसान होगा और क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा.
वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation One Election) विधेयक में क्या है खास
वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव का विपक्ष भले ही विरोध कर रहा हो, लेकिन यह प्रस्ताव भारत के लिए नया नहीं है. आजादी के बाद जब देश में पहली बार 1952 में चुनाव हुए थे तो वे इसी तरह हुए थे. उसके बाद 1957 में भी चुनाव वन नेशन, वन इलेक्शन के तर्ज पर ही हुए थे. वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति सितंबर 2023 में गठित की गई थी, जिसने इस प्रस्ताव पर विचार के लिए रिसर्च किया और अपनी रिपोर्ट मार्च 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.
कोविंद समिति की रिपोर्ट में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जाने की सिफारिश की गई है. इसके साथ ही समिति ने कुछ अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें भी की हैं जो इस प्रकार हैं-
केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए जाएं
लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन बाद ही निकाय चुनाव कराए जाएं
समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए साझा वोटर लिस्ट और वोटर आई डी बनाने की सिफारिश की है.
कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश भी की है, जिसमें से अधिकांश संशोधनों में राज्यों की मंजूरी जरूरी नहीं होगी.
संविधान संशोधन के लिए बिल को संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित कराना होगा.
रिपोर्ट में वोटर लिस्ट और वोटर आईडी के बारे में जो सुझाव दिए गए हैं उन्हें लागू करवाने के लिए देश के आधे राज्यों की मंजूरी जरूरी होगी.
रिपोर्ट में त्रिशंकु सदन की स्थिति में यूनाइडेट सरकार बनाने जैसी सिफारिशें भी की गई
समर्थन तर्क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्षधर रहे हैं. इससे पहले भी बीजेपी सरकार ने इसके पक्ष में अपनी राय रखी है. 2003 में अटल बिहारी वाजेपी की सरकार के वक्त भी इसपर चर्चा हुई थी और अटल बिहारी वाजपेयी इसे लागू करवाना चाहते थे. वन नेशन, वन इलेक्शन के पक्ष में तर्क हैं-
देश में एक साथ चुनाव होने से खर्च कम होगा, अन्यथा हमेशा देश में चुनाव होते रहते हैं और हर बार चुनाव पर खर्च करना पड़ता है. राजनीतिक दलों को भी कम खर्च करना पड़ेगा
देश में कई बार चुनाव होने से अनिश्चितता की स्थिति बनती है और व्यापार एवं निवेश प्रभावित होता है.
बार-बार चुनाव होने से सरकारी मशीनरी प्रभावित होती है, जिससे नागरिकों को असुविधा होती है.
सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव ड्यूटी देने से उनपर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है.
आचार संहिता लागू होने से कई बार कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में देरी होती है, जिसकी वजह से विकास कार्यों पर असर पड़ता है.
बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं का उत्साह कम हो जाता है और वे वोटिंग में रुचि नहीं लेते हैं.
वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को लागू करने में कई चुनौतियां हैं, जिनपर विचार करने की जरूरत है और संभावना जताई जा रही है कि सरकार इसके लिए बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजेगी. बिल को लागू करने में ये हैं चुनौतियां-
क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएंगे क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय मुद्दे फोकस में होते हैं.
क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा क्योंकि एक साथ चुनाव होने से क्षेत्रीय पार्टियों पर ध्यान कम जाएगा.
सांसदों की जवाबदेही कम हो सकती है, क्योंकि एक बार चुनाव होने से वे पांच साल के लिए निश्चित हो जाएंगे.
विपक्ष की चिंता है कि वन नेशन, वन इलेक्शन से संघीय ढांचे को नुकसान होगा, तो यह एक बड़ी चुनौती इसलिए है क्योंकि अनुच्छेद 172 के तहत राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल के संबंध में संविधान में संशोधन राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता के बिना लागू किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से उनकी भूमिका सीमित हो सकती है और संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है.
वन नेशन, वन इलेक्शन के प्रस्ताव को लागू करने के लिए पर्याप्त संख्या में संसाधनों की आवश्यकता होगी. मसलन ईवीएम, चुनाव कराने के लिए मैनपावर इत्यादि.


Post a Comment
0Comments